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पशुपालन विभाग

प्रदेश में पशु चिकित्सा एवं पशु कल्याण से सम्बन्धित कोई विभाग सन् 1892 तक नहीं था। यद्यपि कि महानिरीक्षक नागरिक पशु चिकित्सा विभाग भारत सरकार द्वारा इम्पीरियल अश्व प्रजनन विभाग शिमला में संचालित था। सन् 1892 में इम्पीरियल विभाग के क्रिया-कलापों के सहयोग हेतु नागरिक पशु चिकित्सा विभाग का गठन और मेरठ जनपद के बाबूगढ़ में निदेशक भू-अभिलेख एवं कृषि के अधीन एक अधीक्षक की नियुक्ति हुयी। सन् 1920 में विभाग को निदेशक भू-अभिलेख एवं कृषि के नियंत्रण से अधीक्षक को मुक्त करते हुये पदनाम निदेशक, नागरिक पशु चिकित्सा विभाग कर दिया गया।
पशुपालन विभाग का सृजन जनवरी 1944 में हुआ था। तत्कालीन संयुक्त प्रान्त में एक नये पशुपालन विभाग के गठन के लिये भारत सरकार एवं अवकाश प्राप्त पशुपालन आयुक्त सर फ्रैन्क वेयर सी0आई0इ0, एफ0आर0सी0वी0एस0 के कुशल मार्गदर्शन का लाभ लिया गया और उन्हें ही विभाग को प्रथम निदेशक बनाया गया। विभाग के गठन के बाद नागरिक पशु चिकित्सा तथा कृषि विभाग के माध्यम से पूर्व में संचालित होने वाले कार्य पशुपालन विभाग के अन्तर्गत स्थानान्तरित हो गये।
1. पशु प्रजनन एवं पशुधन प्रक्षेत्र।
2. पशुधन विपणन।
3. कुक्कुट प्रक्षेत्र एवं कुक्कुट विकास।
4. पशु प्रदर्शन एवं प्रदर्शनी।
5. भेड़ एवं बकरी प्रजनन।
6. सूकर प्रजनन।
7. पशु गणना।
8. घी एवं दुग्ध योजना।
9. मत्स्य एवं दूध उत्पादन।
10. सेना द्वारा पशुधन सम्बन्धी स्थानीय क्रय।
मार्च 1944 में पशुपालन निदेशक को विकास में सहायता देने के लिए पशुपालन के विभिन्न शाखाओं में अन्य पदों का सृजन हुआ। नागरिक पशुपालन विभाग की गतिविधियों को पूरे प्रान्त में विस्तारित करने के लिये सन् 1945 में इस विभाग का पशुपालन विभाग में विलय कर दिया गया, जिसके द्वारा पूर्ववर्ती विभाग के समस्त स्थलीय कार्मिकों का उपयोग संयुक्त पशुपालन विभाग के गतिविधियों में किया गया। अब तक पशु रोग एवं महामारी नियंत्रण हेतु आवश्यक जैविक उत्पादों का क्रय आई0वी0आर0आई0 इज्जतनगर, बरेली से किया जाता रहा। राज्य में विभागीय आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए सुविधा एवं सस्ते जैविक उत्पादों की उपलब्धता हेतु जैविक उत्पाद शाखा लखनऊ में खोलने का निर्णय हुआ, जिसके लिये सन् 1945 में प्रभारी अधिकारी, जैविक उत्पाद शाखा का पद सृजित हुआ जो जैविक उत्पादों जैसे पशु टीका तथा सीरम उत्पादन के लिये उत्तरदायी थे।
सन् 1947-48 में राज्य में पशु चिकित्सा पेशे में मानव संसाधन विकास को ध्यान में रखते हुये उ0प्र0 पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय मथुरा में स्थापित किया गया, जो कालान्तर में सी0एस0ए0 कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर से आच्छादित हुआ।
सन् 1947 के प्रारम्भ में एक अलग मत्स्य विभाग को गठन करने का निर्णय लिया गया। परिणामस्वरूप सन् 1964 में मत्स्य विभाग को अलग कर दिया गया। तत्समय चालू घी प्रदर्शन योजना पर बाद में रोक लगा दी गयी तथा कार्मिकों एवं घी ग्रेडिंग स्टेशनों को उ0प्र0 सहकारी संघ में स्थानान्तरित कर दिया गया, जो कि सन् 1948 से प्रभावी हुआ।
ग्रामीणों के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान तथा रोजगार सृजन हेतु वर्तमान में पशुपालन विभाग द्वारा पशुधन विकास, कुक्कुट विकास, रोग नियंत्रण, चारा विकास एवं पशुपालन सम्बन्धी अन्य गतिविधियां संचालित हो रही हैं।

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